दिन २१: प्रार्थना
मैं परमेश्वर से जो स्वर्ग में है कैसे बातचीत कर सकता हूँ?
किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारें निवेदन, प्रार्थना और विनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किये जायें।
कितना बड़ा भाग्य है कि आप स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु से किसी भी क्षण व्यक्तिगत रूप से बाते कर सके!
यीशु के शिष्यों ने यह देखा कि वह अपने स्वर्गीय पिता के संग कितना समय व्यतीत करता है एक दिन उन्होंने पूछा, “क्या आप हमें प्रार्थना करना सिखा सकते हैं,”
उसका जवाब मत्ती 6: 9-13 था, जो अधिकतर एक उदाहरण के रुप में प्रभु की प्रार्थना नाम से भी जाना जाता है। वह हमारा ध्यान उस पर केन्द्रित करता है। यह हमारे क्षमा करने की और सुरक्षा की दैनिक आवश्यकताओं को उन तक पहुँचाता है। और स्तुति के साथ खत्म होती है।
यीशु के साथ अपने परम मित्र की तरह बातें करें। उसके प्रति महान प्रेम के लिए उसकी स्तुति करे धन्यवाद दें। अपनी चिंतायें उसको बतायें। आप उसके साथ कुछ भी बांट सकते हैं क्योंकि वह पहले से ही जानते हैं इसलिये चिन्ता मत कीजिये उनको सदमा नहीं लगेगा।
दाऊद के कई सारे भजन संकट के समय सहायता की दोहाई है। भजन 17, 28, 61, 64, 70 और 86 में, दाऊद परमेश्वर को उसकी सुनने और उसकी सुरक्षा के लिये पुकारता है।
जब आप यह जान जाते हैं कि आपने परमेश्वर को निराश किया है। आप तुरन्त उसके पास आये और उससे क्षमा मांगे। वह आपको माफ करेंगे,प्रोत्साहित करेंगे, ताकत देंगे और आपकी मुसीबतों को साफ रूप से दिखायेंगे।
याद रखना प्रार्थना परमेश्वर के साथ निरंतर उसके साथ बातचीत करना है जिसे आप प्यार और विश्वास करना सीख रहे हो। आसमान की ओर देखकर मुस्कुराना और अपने ही हाथ को दबाना- जैसे कि आप प्रभु का हाथ थामें हुए हो- आपको तुरन्त ऐसी नजदीकी में ले आयेगा जिसकी आपको आवश्यकता है।
जब हम परमेश्वर से दूर होते हे तब प्रार्थना करना मुश्किल होता है। क्या ऐसा कुछ है जो आप छिपा रहे है जिसके विषय आपको प्रार्थना करनी चाहिये? किसी से बात करना आपके लिये सहायक होगा।