आहा, परमेश्वर का धन और बुद्दि और ज्ञान क्या ही गंभीर है! उसके विचार कैसे अथाह और उसके मार्ग कैसे अगम्य है।
हाल ही में मैंने एक वृद्ध मनुष्य को जो विश्वासी है, उनको उदास होकर यह कहते सुना, “मैं अपने प्रार्थना जीवन के करीब बिल्कुल भी नहीं हूं“और यह एक झूठी नम्रता नहीं थी। यह उस दिल की पुकार थी, जो यीशु मसीह के अधिक से अधिक करीबी है।
प्रेरित पौलुस अपने जीवन संध्या के करीब पूरे मन से यह कहते हैं, “मैं मसीह को जानना चाहता हूं। वह हम एक खिलाड़ी की उपमा देते हैं, जो अपने लक्ष्य की ओर निरन्तर बढ़ता जाता है “जो बाते पीछे रह गई है उनको भूल कर, आगे की बातों की ओर बढ़ता हुआ, निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूं, ताकि वह इनाम पाऊं, जिसके लिये परमेश्वर ने मुझे मसीह यीशु में ऊपर बुलाया है। (फिलिप्पियों 3: 10, 13-14)
टी. ओस्टिन-स्पार्कस ने मसीह की विशालता को इन शब्दों में कहा है, “हमारे अन्दर पवित्र आत्मा का कार्य हमें इस महासागर के किनारे लेकर आना है, जिसके छोर हमारी पहुंच के बहुत बाहर है और जिसके विषय हमें यह लगता है कि आह मसीह की गहराई उसकी भरपूरी। यदि हम उतने साल जीये जितना मानव जीवन इस भूमि पर पूर्ण कर चुके तब भी हम मसीह की विशालता के एक किनारे पर ही पहुंच पायेंगे“
यह अध्ययन कल समाप्त हो रहा है। बधाई हो! आप निरन्तर 30 दिन तक लगे रहे! मेरी विनती है कि आप लगे रहे और बढ़ते जायें क्योंकि आपने सिर्फ सतह को खरोंचा मात्र है। और भी बहुत कुछ है! और आपके पास बहुत अधिक पाने की क्षमता है। यीशु को जानना जीवनभर का कार्य है।
हम एक ऐसी दौड़ -दौड़ रहें है जिसका लक्ष्य स्वर्ग है। क्या आप स्वर्ग की बाट जोह रहें है?