३० दिन के अगले कदम

दिन १: व्यक्तिगत रूपान्तरण

वास्तव में क्या होता है जब मैं यीशु का अनुगमन करने के लिये अपने आपको समर्पित करता हूँ?

दिन १: व्यक्तिगत रूपान्तरण

“सो यदि कोई मसीह में है तो वह नईं सृष्टि हैः पुरानी बातें बीत गईः देखो वे सब नईं हो गई”

2 कुरिन्थियों 5:17

उस महत्वपूर्ण निर्णय के लेने में

  • आपको अहसास होता है कि आप परमेश्वर के साथ बिना किसी व्यक्तिगत संबंध के जीये, और अब बदलना चाहते है।
  • आप मनफिराते है, परमेश्वर की ओर मुड़ते है और अपने पुराने जीवन से दूर होते है।
  • आप यीशु मसीह को अपना उद्धारकर्ता और अपने जीवन का प्रभु करके स्वीकार करते है।

बाईबिल इस रूपान्तरण की व्याख्या इस प्रकार करती है: अन्धकार से बाहर, उजाले की ओर; दासत्व से स्वतंत्रता की ओर मृत्यु से जीवन की ओर।

वाह! आप सोचते हो कि मसीह यीशु के पीछे चलने के लिये समर्पित होने पर आपके जीवन के काले बादल छट जायेंगे और सूरज की किरणें आपकी जीवन को भर देंगी और आपकी सारी परेशानियां छू-मन्तर हो जायेगी। पर मेरा अनुभव यह नहीं था। मुझे पहले दिन बहुत अलग जैसा कुछ महसूस नहीं हुआ, जल्द ही, जैसे-जैसे मैंने मसीह को अपने जीवन के विचारों और निर्णयों को निर्देशित करने दिया वैसे-वैसे मुझे एक नई शान्ति, आत्मविश्वास और आंतरिक आनंद की अनुभूति हुई।

मान लीजिए कि आपने एक कार खरीदी और इस बात से चौक गये कि गये उसमें बैट्री नहीं लग रखी। आप अपने कीमती सम्पत्ति को निहार सकते हैं और अन्दर बैठकर आप उसको चलाने की कल्पना भी कर सकते हैं, लेकिन बैट्री के बगैर आपकी चमचमाती नई गाड़ी चल नहीं सकती। मसीह के बिना हमारा जीवन भी वैसा ही है, पर जब वह हमारी “ऊर्जा के स्त्रोत” होकर हमारे साथ होते हैं तब हम वो कर पाते हैं जिसके प्रारूप में हमें बनाया गया है।

यदि आपको तुरन्त कोई बदलाव न लगें तो भी उत्साहित रहें. चाहे आपने अपना सफर शुरु ही किया हो या फिर बहुत दूरी तय कर ली हो लेकिन एक नयें पऱिप्रेक्ष्य की आवश्यकता है. विकास के लिये बदलाव अनिवार्य है ! आपके अंदर यीशु के होने के कारण परिवर्तन अपने आप आयेंगे. आप एक नये व्यक्ति हो. आपने एक नये सफर की शुरुआत करी है.

दिन २: सफर की शुरुआत करना


परमेश्वर के करीब आने के लिये आज आप कौनसा कार्य करेंगें? सुझाव चाहिये?