३० दिन के अगले कदम

दिन २०: आराधना

मेरे लिये प्रभु की स्तुति आराधना करना इतना महत्वपूर्ण क्यों है?

दिन २०: आराधना

हे मेरे मन यहोवा को धन्य कहो; और जो कुछ भी मुझमें है, उसके पवित्र नाम को धन्य कहो!

भजन 103:1

नोटः दिन २० और २१ मेरी प्रिय पत्नी वेन्डी वैकेंट द्वारा लिखे गये है।

जब विश्वासी प्रभु यीशु की स्तुति करते है और उसके लिये गाते हैं, क्या वह इसलिए है कि इस संसार के परमेश्वर को आराधना की जरूरत है। वास्तव में मुझे यह ज्ञात होता है कि स्तुति और आराधना मेरे विचारों को मुझसे हटाकर मेरे उद्धारकर्ता, मेरे मित्र और प्रभु की ओर ले चलती है।

जब हम उसकी अच्छाई, उसके अगाध प्रेम और उसके त्यागपूर्ण मृत्यु पर ध्यान करते हैं और हमारे जीवन में उसकी महानता याद करते हैं तब हमारा स्वभाव प्रतिक्रिया स्तुति और आराधना करना है। हमारा हृदय प्रेम और धन्यवाद से अपने-आप छलकता है।

दाउद इस्राएल का सबसे बड़़ा राजा, एक आराधक था। भजन उसके धन्यवाद और प्रेम से भरे हुए है।

  • “हे मेरे मन, यहोवा का धन्यवाद करो क्योंकि वह भला है! उसकी करुणा सदा की है धन्यवाद करो (भजन 107:1)
  • यहोवा महान और अति स्तुति के योग्य है (भजन 48:1)।
  • परमेश्वर जीवित है! मेरी चट्टान धन्य है! और मेरे मुक्तिदाता परमेश्वर की बड़ाई हो (भजन 18:46)।

अपने प्रतिदिन के कार्यों में वह जो है इसलिए उसकी स्तुति करें। उनसे कहे कि आप उनसे प्रेम करते हैं। कुछ दिन आपको धन्यवाद करने की भावना नहीं होगी पर आप उसकी दिनभर जितनी अधिक आराधना करेंगे उतनी अधिक आप उसके आनंद को महसूस करेंगे और उतना अधिक उसके नजरिये से देखेंगे। आपके जीवन को एक नया अर्थ मिलेगा।

दिन २१: प्रार्थना


सूर्य के उदय होने से अस्त होने तक प्रभु के नाम की स्तुति होनी चाहिये। आप आज पूरे दिन उसकी आराधना कैसे कऱेंगें?