३० दिन के अगले कदम

दिन ७: जीवन का अर्थ

जीवन में सबसे महत्वपूर्ण क्या है?

दिन ७: जीवन का अर्थ

अब से मैं तुम्हें दास न कहूँगा……… परन्तु मैनें तुम्हें मित्र कहा है।

यूहन्ना 15:15

लोग जीवन के अर्थ को बहुत तरीकों से ढ़ूँढ़ते है। धन, शक्ति, औहदा, दौलत। यह चाहे कितने ही आकर्षक क्यों न हो इन्हें प्राप्त करने वाले अमूमन अतृप्त होते है।जीवन के संध्याकाल होने पर ही अधिकतर लोगों को रिश्तों की अहमियत समझ में आती है।

मैं अपने जीवन में धन्यवादी हूँ कि मैं इतना कुछ हासिल कर सका। कईं लोगों के नजरियें में एक “सफल” व्यक्ति हूँ। परन्तु मेरे जीवन का सबसे बड़ा खजाना वह रिश्ता है जो मेरा मेरी पत्नी वेन्डी के साथ मेरे बच्चों के साथ और जो मेरे बच्चों नाते पोतियों और करीबी-करीबी मित्रो के संग है-और वह रिश्ता -जो मसीह यीशु के साथ है और एक बंधन, जो अतुल्य है!

उन समयों में भी जब हमें विवाह के गहरे रिश्ते, परिवार और दोस्तों के साथ अपने संम्बन्ध से महरूम होते है। तब भी ऐसा एक व्यक्ति होता है, जो बिना चूके हमेशा हमारा मित्र बना रहता है। उसके वायदे को याद कीजिए: “मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूँगा और कभी नहीं त्यागूंगा”

बिली ग्राहम जब नब्बे वर्ष के हुए (दिन 5 में इसका जिक्र किया गया है) तब तक उनकी पत्नी रूत और बहुत करीबी लोग दुनिया छोड़कर चले गये। पर यीशु हमेशा उनका दोस्त रहा। उन्होंने कहाः आपके जीवन की सबसे बड़ी खोज यही है कि आपकी सृष्टि परमेश्वर को जानने के लिए की गई थी और कि आप अनंतकाल के लिए उसके मित्र बन जाये। यह एक स्तम्भित करने वाला सत्य है। सोचिये अनंत सर्वशक्तिमान और पवित्र परमेश्वर आपका मित्र बनना चाहते है। वह चाहते है कि आप उसे व्यक्तिगत रूप से जाने।“

कुछ क्षण लेकर इस सत्य को मन में उतारे, और इसमें आप जीवन के इस सत्य को जानेंगें कि आपकी सृष्टि परमेश्वर के मित्र होने के लिए करी गई है।

दिन ८: 30 दिन ही क्यों?


प्रभु के साथ एक रिश्ता बनाने पर कैसा लगता है? क्या आपको यह असंभव लगता है? किसी से इस विषय में बात करें।